मेरी थोड़ी सी पुरानी पोस्ट 'डेज़ से भरी टोकरी' पर
दिगम्बर नासवा जी ने टिप्पणी में लिखा था -
'एकांत डे' भी होना चाहिए|
माहेश्वरी कनेरी जी ने लिखा-एक 'अपना डे' होना चाहिए|
उन्हीं टिप्पणियों का परिणाम है यह कविता...
''एकांत डे''
सरपट दौड़ रही ज़िन्दगी
लोगों की भागम-भाग मची है
आत्मचिन्तन करना था मुझको
एकांत मगर ढूँढे न मिला
आबादी वाले शहरों में
चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत|
सुबह सवेरे सैर बहाने
कहीं पेड़ की छाँव तले
आत्ममंथन करना था मुझको
आपाधापी मची यहाँ भी
मैदान ज़ैविक उद्यान में
चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत|
बाकी दिन बीते दफ़्तर में
दबे काम की बोझ तले
आत्मविश्लेषण करना था मुझको
फ़ाइल पठन ही हो पाया
साथ दिवस अवसान के
चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत|
सोचा मंदिर की सीढ़ियों पर
कुछ वक्त शांत बिता लूँगा
आत्मविमोचन कर पाउँगा
कामना की लम्बी कतार में
पुजारी-भक्तों की भीड़ में
चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत|
अब तो वापस अपने घर में
शांत बैठ अपने कमरे में
आत्मविचार लिख पाऊँगा
टेलीविज़न के शोर में
माँगों की लम्बी फ़ेहरिस्त में
लेखनी मेरी खो गई
चिर प्रतीक्षित रह गया एकांत|
इन शोर-शराबों से दूर -दूर
काश कि ऐसा दिन भी होता
रहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|
ऋता शेखर’मधु’
इन शोर-शराबों से दूर -दूर
काश कि ऐसा दिन भी होता
रहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|
ऋता शेखर’मधु’
इन शोर-शराबों से दूर -दूर
जवाब देंहटाएंकाश कि ऐसा दिन भी होता
रहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|
वाह !!!! बहुत सुंदर रचना,,,अच्छी प्रस्तुति
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
ऐसी अभिलाशा तो मेरी भी है|
जवाब देंहटाएंकाश ऐसा हो पाता|
आपने अपने सशक्त लेखनी से बहुत ही अच्छे पहलु को छुआ है|बध्ई..
लगे मनोरम अति-प्रिये, खिन्न मनस्थिति शांत |
जवाब देंहटाएंरमे *कांत-एकांत में, अब भावे ना **कांत |
अब भावे ना कांत, ***कांती-कष्ट-कांदना |
छोड़ चलूं यह प्रांत, करूँगी कृष्ण-साधना |
मन में रही ना भ्रांत, छला जो तुमने हरदम |
कृष्णा छलिया श्रेष्ठ, भजूँ वो लगे मनोरम ||
*मनोरम
**पति
***बिच्छू का दंश
काश कि ऐसा दिन भी होता
जवाब देंहटाएंरहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|
वाह ...बेहतरीन भावों का संगम ...
आज की भागमभाग और शोर शराबे से भरी दुनिया में एकांत 'डे' किसी सपने के सच होने से कम बात नहीं...इसके लिए शायद हिमालय की अनजान वादियों में भटकना पड़े क्यूँ की जानकार वादियाँ तो पर्यटकों से भरी पड़ी रहती हैं...सुन्दर रचना है आपकी....बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंनीरज
इन शोर-शराबों से दूर -दूर
जवाब देंहटाएंकाश कि ऐसा दिन भी होता
रहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|.....बहुत सुन्दर, सुन्दर भाव खुबसुरत रचना...
एकांत डे अपने अन्दर ही होता है...
जवाब देंहटाएंबहार ढूँढना बेकार है...
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
मुश्किल है एकांत डे .... शुभकामनाओं का भी शोर होगा
जवाब देंहटाएंइन शोर-शराबों से दूर -दूर
जवाब देंहटाएंकाश कि ऐसा दिन भी होता
रहता सब कुछ शांत-एकांत
सिर्फ हम होते और होती
सिर्फ अपनी ही सोच
कोई 'एकांत डे' या 'अपना डे'|
.....सच में एक डे ऐसा भी होना चाहिए जब हम हों और सिर्फ़ हम...बहुत सुन्दर रचना..
बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंहम आपका स्वागम करते है....
दूसरा ब्रम्हाजी मंदिर आसोतरा में .....
बहुत खूब ... एकांत डे की जरूरत समझ आ गयी ... आपकी लाजवाब रचना पढ़ के आभास हो रहा ही की जीवन में एकांत तो कभी मिल ही नहीं पाता चिर एकांत से पहले ... वो तो मात्र प्रतीक्षा करता रहता है अपना नंबर आने की ... अपना डे आने की ...
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की आपाधापी में नहीं मिलता कोई एकांत डे या अपना डे ... बहुत खूबसूरती से सभी पहलुओं को उकेरा है ...
जवाब देंहटाएंऔर कभी कभार एकांत मिल भी जाए तो विचारों की भीड़ आकर घेर लेती है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता।