गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

परी देश की शहज़ादी





परी देश की शहज़ादी
दूर देश से आई थी
मधुर-मधुर सी थिरकन को
पांवों में भरकर लाई थी
मंद स्मित मुस्कानों को
होठों से छलकाई थी
मिश्री सी वाणी की उसने
रागिनी फैलाई थी
दौड़-दौड़ घर उपवन में
तितली सी हरषायी थी
पापा-मम्मी की प्यारी बिटिया
अपने घर की धड़कन थी
वक्त को पर लगे होते
अब वह प्यारी दुल्हन थी|

आँखों में रंगीले ख़्वाब लिए
सोने के पिंजड़े में कैद हुई
पायल की बेड़ी ऐसी बंधी
थिरकन उसकी थम  गई
व्यंग्य बाणों से बिंध-बिंध कर
होठों पर मायूसी थी
तान नहीं,
ताने सुन-सुन कर
स्वर में अब खामोशी थी
अब भी वह सुंदर लगती थी
पर सोन तीलियों से टकरा-टकरा
पंख टूट गए थे उसके
अरमानों के चीथड़े चुनती
अब वह सुखी गृहिणी थी|

ऋता शेखर मधु

दूर से सुखी, संतुष्ट और खुश दिखने वाली गृहिणियों के दिलों में झाँक कर देखा है,तब इसे लिखा है.

17 टिप्‍पणियां:

  1. उसकेअरमानों के चिथड़े चुनतीअब वह सुखी गृहिणी थी|
    बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति,सुंदर रचना,

    MY RECENT POST ...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  2. अरमानों के चीथड़े और सूखी गृहणी ! ....

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  3. बहुत सुंदर चित्रण...............
    काफी हद तक सही भी ..............

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  4. बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

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  5. अब भी वह सुंदर लगती थी
    पर सोन तीलियों से टकरा-टकरा
    पंख टूट गए थे उसके
    अरमानों के चीथड़े चुनती
    अब वह सुखी गृहिणी थी|

    Waah.... Sab Kuchh Sametti Panktiyan

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  6. तान नहीं,
    ताने सुन-सुन कर
    स्वर में अब खामोशी थी

    तान और ताने -शब्दों का प्रभावी प्रयोग, वाह

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  7. सही कहा ! हर परी देश से आई शहजदियो का शादि के बाद यही हाल होते देखा है.....बहुत सटीक प्रस्तुति..

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  8. अपनी बच्ची के आंसू और घुटन महसूस होते हैं मगर दूसरों की बच्ची के आंसू हमें अपने नहीं लगते, २० साल बाद इसी गैर बच्ची(नव वधु) से, जो उस समय, घर की शासक होती है, हम प्यार और सहारे की उम्मीद करते हैं !


    हमें अपने घर में विरोध करना आना चाहिए ....

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  9. अब भी वह सुंदर लगती थी
    पर सोन तीलियों से टकरा-टकरा
    पंख टूट गए थे उसके
    अरमानों के चीथड़े चुनती
    अब वह सुखी गृहिणी थी|
    सुन्दर अभिव्यक्ति,शुभकामनाये

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  10. नारी की बदलती भूमिका को शब्द देती सुंदर कविता।

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  11. ऋता शेखर मधु जी
    सस्नेहाभिवादन !

    भावुकता में बह कर लिखी रचना प्रतीत होती है । कवि-हृदय भावुक होता भी है !

    परी देश की शहज़ादी का हमेशा हर कहीं तो करुण अंज़ाम नहीं होता…
    पूरी तरह सुखी, संतुष्ट और खुश कौन है आज ?
    इस तरह की कविताएं लिखने का सुखी और साधन-संपन्न कवयित्रियों में चलन अवश्य देखा है … ऋता शेखर मधु जी
    आप मेरी बात से कृपया, नाराज़ न हो जाएं …

    छल-कपट मेरी प्रकृति-प्रवृति में नहीं तो छद्म भी नहीं , जैसा लगा कह दिया है … बस !

    शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  12. आदरणीय राजेन्द्र सर,

    मुझे बहुत खुशी हुई कि आपने वही लिखा जो आपको लगा|सर, सभी बातें सभी जगह लागू नहीं होतीं|
    टिप्पणी में सिर्फ वाहवाही लिखी जाए इससे मैं भी सहमत नहीं हूँ|आपके प्रोत्साहन भरे कमेन्ट्स भी पहले मिल चुके हैं...फिर इस टिप्पणी से मैं क्यों नाराज हो जाऊँगी?
    बस एक बात कहना चाहती हूँ...इसे मैंने चलन के तहत नहीं लिखा है,जो खुद में और आस पास में महसूस किया है वही लिखा है|

    सादर

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  13. सुखी ग्रहणी हो तो अच्छी बात है.
    सूखी हो तो चिंता की बात है.

    जीवन एक सरिता की तरह
    आगे बढ़ता रहता है. जिस में प्रचुर जल
    गतिमान होना चाहिए.गंतव्य यदि
    आनन्द सागर परमात्मा हो
    तो सुख ही सुख है जी.

    सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार

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  14. अरमानो को हकीकत का ओढना उढा कर पुख्ता कर देती है जिंदगी...चाहे वो औरत हो या मर्द...,भावपुर्ण रचना दीदी

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