नन्हें मुन्नों संग खिलखिलाना सीखा है हमने
उनकी मासूमियत अपनाना सीखा है हमने|१|
मिट गए सारे रंजो-गम पल भर के लिए
उनसे सच्चाई आज़माना सीखा है हमने|२|
अहं को परे रख दिया दोस्ती के लिए
उन-सा ही सब कुछ भुलाना सीखा है हमने|३|
चोट लगी ज़ार ज़ार रो पड़े थे हम
रोते-रोते हँसने की कला भी सीखा है हमने|४|
कागज़ों पर आड़ी सीधी रेखाएँ खींचते हैं वो
उनसे उल्टे सीधे शब्द सजाना सीखा है हमने|५|
भा जाती हैं बच्चों की चुलबुली आँखें
गंभीरता के बीच शरारतें भी सीखा है हमने|६|
ग़ल्तियाँ हो जाएँ सर झुका लेते हैं वो
उनसे भूल को स्वीकारना सीखा है हमने|७|
घंटी लगी, आजादी का शोर गूँजा
उनके बीच अपना सुर मिलाना सीखा है हमने|८|
ऋता शेखर ‘मधु’
होशियारी सीखी या नहीं
जवाब देंहटाएंअनाड़ी हो कि नहीं ... इससे परे
बच्चे बन जाओ
मिलजुल रहो , हंसो , मासूम सपने देखो
न किसी ध्यान की ज़रूरत होगी
न योग की ... बचपन है तो सब है ...
आजादी का शोर गूँजाउनके बीच अपना सुर मिलाना सीखा है हमने|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव,...
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,
एक और खुबसूरत प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसही है बच्चों की मासूमियत ।
उनसे सीखने की जरुरत है हमें ।।
बच्चों का सा निर्मल मन ...काश हम कुछ सीख सकें ....अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबड़ा सुख है बच्चा बने रहने में....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावनाएं ऋता जी.
सस्नेह.
बहुत ही अनुपम भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंग़ल्तियाँ हो जाएँ सर झुका लेते हैं वो
जवाब देंहटाएंउनसे भूल को स्वीकारना सीखा है हमने|७|
sahi bat .
Bahut Sunder....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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