गुरुवार, 29 मार्च 2012

सीखा है हमने...


                         



नन्हें मुन्नों संग खिलखिलाना सीखा है हमने
उनकी मासूमियत अपनाना सीखा है हमने|१|

मिट गए सारे रंजो-गम पल भर के लिए
उनसे सच्चाई आज़माना सीखा है हमने|२|

अहं को परे रख दिया दोस्ती के लिए
उन-सा ही सब कुछ भुलाना सीखा है हमने|३|

चोट लगी ज़ार ज़ार रो पड़े थे हम
रोते-रोते हँसने की कला भी सीखा है हमने|४|

कागज़ों पर आड़ी सीधी रेखाएँ खींचते हैं वो
उनसे उल्टे सीधे शब्द सजाना सीखा है हमने|५|

भा जाती हैं बच्चों की चुलबुली आँखें
गंभीरता के बीच शरारतें  भी सीखा है हमने|६|

ग़ल्तियाँ हो जाएँ सर झुका लेते हैं वो
उनसे भूल को स्वीकारना सीखा है हमने|७|

घंटी लगी, आजादी का शोर गूँजा
उनके बीच अपना सुर मिलाना सीखा है हमने|८|

ऋता शेखर मधु

9 टिप्‍पणियां:

  1. होशियारी सीखी या नहीं
    अनाड़ी हो कि नहीं ... इससे परे
    बच्चे बन जाओ
    मिलजुल रहो , हंसो , मासूम सपने देखो
    न किसी ध्यान की ज़रूरत होगी
    न योग की ... बचपन है तो सब है ...

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  2. आजादी का शोर गूँजाउनके बीच अपना सुर मिलाना सीखा है हमने|
    बहुत सुंदर रचना,बेहतरीन भाव,...

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: तुम्हारा चेहरा,

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  3. एक और खुबसूरत प्रस्तुति ।

    सही है बच्चों की मासूमियत ।

    उनसे सीखने की जरुरत है हमें ।।

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  4. बच्चों का सा निर्मल मन ...काश हम कुछ सीख सकें ....अच्छी प्रस्तुति

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  5. बड़ा सुख है बच्चा बने रहने में....

    बहुत सुन्दर भावनाएं ऋता जी.

    सस्नेह.

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  6. बहुत ही अनुपम भाव लिए उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ।

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  7. ग़ल्तियाँ हो जाएँ सर झुका लेते हैं वो
    उनसे भूल को स्वीकारना सीखा है हमने|७|
    sahi bat .

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  8. बहुत सुंदर । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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