जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ...प्रस्तुत है लोकगीत विधा पर आधारित मुरली मनोहर से शिकायत करता एक गीत...
काहे सताया बोलो काहे सताया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
मार कंकरी उसकी फोड़ी गगरिया
पनघट की डगर पर उसको रुलाया
काहे रुलाया बोलो काहे रुलाया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
वृषभानु की छोरी लाज से भरी थी
बेर बेर बंसी की धुन से बुलाया
काहे बुलाया बोलो काहे बुलाया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
प्रीत में तेरी वही तो बंधी थी
उसे छोड़ सखियों संग रास रचाया
काहे रचाया बोलो काहे रचाया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
होरी के रंग में डूब गई बाला
उल्टे ही तूने मुँह को फुलाया
काहे फुलाया बोलो काहे फुलाया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
दौड़ पड़े झट से मथुरा की पुकार पर
वृंदावन की गलियों को दिल से भुलाया
काहे भुलाया बोलो काहे भुलाया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
तेरे ही नाम की माला जपी वह तो
उद्धव के बदले तुम ही समझाते
काहे नहीं आए बोलो काहे नहीं आए
राधे को कान्हा तुम काहे सताये
मथुरा के नृप बन गद्दी पर बैठे
छलिया बड़े, रुक्मिणी को ब्याह लाए
लड़कपन में भोली को काहे लुभाया
राधे को कान्हा तूने काहे बिसराया
काहे बिसराया बोलो काहे बिसराया
राधे को कान्हा तूने काहे सताया
.....................ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए धन्यवाद।
वाह !!! बहुत सुंदर सृजन ,,,
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ..
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बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंराधा को न सताऊं तो प्यार कैसे दरसाऊँ - विरह प्रेम की ही शाखाएं हैं
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब |
जवाब देंहटाएंशिकायत वो भी इतनी प्रेम भरी ... मनुहार लिए ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...