1.
फूल शूल से है भरा दुनिया का यह पन्थ
चक्षु सीप में रच रहा बूँदों का इक ग्रन्थ
2.
ज्ञान डोर को थाम कर तैरे सागर बीच
तंतु पर है कमल टिका छोड़ घनेरी कीच
3.
पहन सुनहरा घाघरा, आई स्वर्णिम भोर
देशवासियो अब उठो, सरहद पर है चोर
4.
तपी धरा वैशाख की आया सावन याद
मन की पीर कौन गहे गुलमोहर के बाद
5.
शब्द चयन में हो रही जबसे भारीभूल
राई से पर्वत बने उड़े बात के धूल
6.
बेचैनी से घूमते हवाजनित ये रोग
राजनीति के पेंच में उलझे उलझे लोग
7.
क्या देना क्या पावना जब तन त्यागे प्राण
तड़प तड़प के हो गई याद मीन निष्प्राण
--ऋता शेखर 'मधु'
बहुत सुन्दर दोहे...वाह!
जवाब देंहटाएंआभार आपका !!
हटाएंसुन्दर दोहे।
जवाब देंहटाएंआभार आपका !
हटाएंशुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 30 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया यशोदा जी !
हटाएंआदरणीय ,सुन्दर रचना ,अलसाती संवेदनाओं को जगाती ,आभार।
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन हेतु आभार आपका !
हटाएंसटीक दोहे
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
हटाएंबहुत ही सुन्दर ......लाजवाब प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुधा जी
हटाएंआभार आपका !
जवाब देंहटाएंBeautiful lines.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
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