बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

अस्तित्व

"अस्तित्व"
दिल की धड़कन बन्द होती सी महसूस हो रही थी। मैंने झटपट मशीन निकाली और कलाई पर लगाया। नब्ज रेट वाकई कम था।
"ओह, क्या तुम मुझे कुछ दिनों की मोहलत दे सकती हो प्रिय", मैंने डूबते स्वर में उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
"तुम्हारे पास समय की कमी नहीं थी। पर अब ऐसा क्या है जो तुम करना चाहती हो।" उसने मेरा हाथ छुड़ाते हुए कहा।
"मैं पन्नों को समेट रही हूँ। कुछ बाकी हैं जो अंत में लगाने हैं। बस उतना वक्त दे दो मुझे।मैं अपने भाव संसार को देना चाहती हूँ," निवेदन का भाव आ गया था मेरी आवाज़ में।
"प्रिय सहगामिनी, आज तुम्हारी आयु पूरी हो रही। बस इच्छाशक्ति ही हम दोनों को साथ रख सकती है। वादा करो अब समय गंवाए बिना अपना कार्य पूरा करोगी।"
"वादा करती हूँ, वादा करती हूँ..." चीखते हुए कहा मैंने।
"तब लो, मैं पुनः तुम्हारे शरीर में समाहित हो रही"
मुझे लगा कि धड़कन अब सामान्य हो रही थी।
उफ्फ़...बिना आत्मा के हमारा सांसारिक अस्तित्व कुछ नहीं। अब अपने अस्तित्व को पन्नो पर शीघ्र ही समेटना होगा।
--ऋता

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