सोमवार, 10 अक्टूबर 2016

पागल-लघुकथा

पागल
नये साल की वह पहली किरण धरती पर आने को कसमसा रही थी|बर्फीली हवा के बीच सूर्यदेव अब तक धुंध का धवल कंबल ओढ़े आराम फरमा रहे थे । सुबह के नौ बज चुके थे| अनुराधा ने पूजा की थाली तैयार की और ननद के कमरे में झांक कर कहा," मोनिका! गोलू सो रहा है ,उसका ध्यान रखना प्लीज़।मैं मंदिर जा कर आती हूँ ।"
शीत लहर के तमाचे खाते और ठिठुरते हुए उसने मंदिर वाले पथ पर कदम बढ़ाए ही थे कि उसके पैरों को जैसे जकड़ लिया एक बेतरतीब कपड़े एवं बालों वाले पागल ने|
‘ नहीं , आज उस तरफ मत जाओ’ वह रास्ता रोककर खड़ा था|
एकबारगी सिहर उठी अनुराधा|
“यह तो वही पागल है जो रोज मुझे आते जाते देखता है, फिर नजरें फेर लेता है| आज इसका इरादा क्या है| इस धुँधलके में कहीं मेरे साथ...नहीं नहीं ”
 आगे की सोचकर वह घबरा गई|
“वापस जाओ” उसने सख्ती से घरघराती आवाज में कहा|
कहीं कुछ ऐसा वैसा न कर बैठे, यह सोच वह वापस आ गई| घर की पूजा में भी उसका मन न लगा| सारे काम निपटाते हुए अनमयस्क सी रही| फिर टीवी खोलकर बैठ गई| अपनी आदत के मुताबिक सबसे पहले समाचार चैनल लगाया|
“मंदिर पर आतंकवादियों का कब्जा, भीषण गोलाबारी में एक बच्चे की जान बचाते हुए मानसिक रूप से विक्षिप्त एक व्यक्ति की मौत| उस व्यक्ति के पास से एक झोला मिला है जिसमें एक डायरी थी| उस डायरी में उसने लिखा था कि आतंकी हमले में उसने अपनी पत्नी और मासूम बच्चे को खोया है और आतंक के खिलाफ लड़ना चाहता है| सब उसको पागल समझते हैं|” अपने शहर और मंदिर का नाम सुन अनुराधा ने देखा कि टीवी पर उसी पागल व्यक्ति की फोटो दिख रही थी|
एकाएक उसके प्रति सहानुभूति उपज आई |
उसने नहीं कहा होता वापस जाने को तो गोलू बिन माँ का....इसके आगे वह सोंचकर काँप उठी और गोलू को बाहों में भींचकर प्यार करने लगी|

--ऋता शेखर ‘मधु’

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि- आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-10-2016) के चर्चा मंच "विजयादशमी की बधायी हो" (चर्चा अंक-2492) पर भी होगी!
    श्री राम नवमी और विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "समय की बर्बादी या सदुपयोग - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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