शनिवार, 29 अक्टूबर 2016

जगमग दीप जले

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नवगीत
नए नए दीपों की माला
पथ में रोज सजाना प्रियवर
अँधियारी रातों के साथी
जगमग कर बन जाना प्रियवर

जिनके दृग की ज्योति छिन गई
उनके मन को रौशन करना
द्वार रंगोली जहाँ मिटी है
तँह रंगों की छिटकन भरना

ख्वाबों से मोती चुन चुन कर
तोरण एक बनाना प्रियवर

तारों की अवली से अवनी
अपनी माँग सजाती जाती
गहन बादलों के पीछे से
चपल दामिनी रूप दिखाती

सूरज के तपते कदमों पर
शबनम बन झर जाना प्रियवर

निश्छल मन पर हुए वार से
जग में लाखों दर्पण टूटे
मंदिर की सीढ़ी पर चढ़कर
जाने कितने अर्पण छूटे

नन्हे दीपक की बाती में
आस बिम्ब लहराना प्रियवर

सबके चैन अमन की खातिर
ओढ़ तिरंगा सरहद से आये
कोमल मन की सूनी बगिया
पारिजात फिर कहाँ से पाये

मुर्छित होते घर के ऊपर
विटप वृक्ष बन जाना प्रियवर

--ऋता शेखर ‘मधु’

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