मल्लिका छंद
21 21 21 21....(212 121 21)
1
दूब से मिलें गणेश।
प्रेम ने किया प्रवेश।।
दान मान ज्ञान संग।
श्वाँस श्वाँस मे उमंग।।
2
है जिया उदास आज।
वीतराग छेड़ साज।।
मंद मंद है समीर।
क्यों पपीहरा अधीर?।।
3
सिंधु में हजार सीप।
पास एक आस दीप।।
हाथ मे लिए गुलाब।
छंद की नई किताब।।
--ऋता शेखर मधु
अनंग शेखर छंद
12 (लघु गुरु) की सोलह आवृत्तियाँ... दो दो पंक्तियों के अंत तुकांत
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
सुनील आसमान में, घिरी घटा सुहावनी,पलाश झूमते रहे, मयूर नाचने लगे।
लता बनी लुभावनी, हवा हुई सुवासिनी,निशीथ प्रीत पात को, चकोर बाँचने लगे।।
गुलाल पीत रंग के ,पराग फूल से झरे ,विनीत बूँद श्रावणी, कली कली सँवारती।
सफ़ेद फेन धारती, हिमाद्रि से बही नदी,जटा हठात छोड़ती, हरी धरा पखारती ।।
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
--ऋता शेखर मधु
21 21 21 21....(212 121 21)
1
दूब से मिलें गणेश।
प्रेम ने किया प्रवेश।।
दान मान ज्ञान संग।
श्वाँस श्वाँस मे उमंग।।
2
है जिया उदास आज।
वीतराग छेड़ साज।।
मंद मंद है समीर।
क्यों पपीहरा अधीर?।।
3
सिंधु में हजार सीप।
पास एक आस दीप।।
हाथ मे लिए गुलाब।
छंद की नई किताब।।
--ऋता शेखर मधु
अनंग शेखर छंद
12 (लघु गुरु) की सोलह आवृत्तियाँ... दो दो पंक्तियों के अंत तुकांत
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सुनील आसमान में, घिरी घटा सुहावनी,पलाश झूमते रहे, मयूर नाचने लगे।
लता बनी लुभावनी, हवा हुई सुवासिनी,निशीथ प्रीत पात को, चकोर बाँचने लगे।।
गुलाल पीत रंग के ,पराग फूल से झरे ,विनीत बूँद श्रावणी, कली कली सँवारती।
सफ़ेद फेन धारती, हिमाद्रि से बही नदी,जटा हठात छोड़ती, हरी धरा पखारती ।।
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--ऋता शेखर मधु
वाह अदभुद
जवाब देंहटाएंवाह वाह।अनुपम सृजन।हार्दिक बधाई
जवाब देंहटाएंअप्रतिम सृजन, हार्दिक बधाई...
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