आज मैं श्रीराम कथा की पाँचवीं कविता लेकर प्रस्तुत हूँ|आपकी छोटी -सी प्रतिक्रिया भी मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है और मुझमें नए उत्साह का संचार करती है|
श्रीराम की किशोरावस्था
बाल्यावस्था बीत गई, श्रीराम हुए किशोर
यगोपवीत संस्कार हुआ, चले गुरुकुल की ओर|
श्वास और स्वभाव में जिनके, बसते चारो वेद
वही गए विद्याध्ययन को, अद्भुत है ये भेद|
अल्प समय में हो गए, विद्या विनय में निपुण
सीखने लगे बड़े मन से, राजाओं के गुण|
शोभा और निखर जाती, लेकर धनुष और बाण
कोशलपुरवासी के बसते थे, श्रीरामचंद्र में प्राण|
बन्धुओं संग शिकार खेलना, प्रतिदिन का था कृत्य
पवित्र मृग ही मारते, राजा को दिखाते नित्य|
श्रीराम के बाण से, पवित्र मृग जो सिधारते
मुक्ति उनको मिल जाती, स्वर्गलोक को जाते|
संग अनुजों मित्रों के, भोजन करते श्रीराम
गुरुजनों के आज्ञाकारी, प्रसन्न रखना था काम|
बड़े ध्यान से श्रवण करते, पुराणों की गाथा
पुन: अनुजों को कहते, समझाकर उनकी कथा|
नित्य ही प्रात: करते, मात- पिता गुरु को प्रणाम
लेकर उनकी आज्ञा, आरम्भ करते नगर का काम|
सर्वव्यापक कलारहित, इच्छारहित निर्गुण निराकार
अद्भुत लीलाओं से करते, मानव- जन्म साकार|
विश्वामित्र की याचना
एक ऋषि थे महाज्ञानी, नाम था विश्वामित्र
वन में करते थे निवास, आश्रम था पावन पवित्र|
जप यज्ञ योग में सदा, रहा करते थे लीन
उपद्रवी असुर निर्भय हो, करते यज्ञ को क्षीण|
महर्षि आहत हो जाते, करूँ क्या मैं उपाय
श्रीराम हैं प्रभु के अवतार, होंगे वही सहाय|
बिन ईश्वर पापी न मरेंगे, हो गई ऐसी सोच
दर्शन कर प्रभु को लाऊँ, तज कर के संकोच|
विचार कर चल दिए, किया सरयू में स्नान
दशरथ के दरबार में, मिला बहुत सम्मान|
मुनिवर के आगमन को, राजा ने माना सौभाग्य
श्रीराम की शोभा देख, मुनि भूले सारा वैराग्य|
राजन के अनुरोध पर, मुनि ने बताई बात
अवधराज सन्न रह गए, जैसे आया झंझावात|
विकल व्यथित हो, अनुनय कर बोले
दिल की बात, संकोच से खोले|
पृथ्वी गौ कोष सेना, सब न्योछावर कर दूँगा
बुढ़ापे में पुत्र मिले, उनको मैं नहीं दूँगा|
सारे पुत्र हैं प्राण समान, सबसे प्रिय हैं राम
सुन्दर छोटा सा पुत्र मेरा, कैसे करेगा यह विकट काम|
राजगुरू ने जब समझाया, राजा का दूर हुआ सन्देह
विश्वामित्र प्रसन्न हुए, पाकर राम- लक्ष्मण सदेह|
सप्रेम पुत्रों को बुलाया, और दे दी यह शिक्षा
ऋषि ही हैं पिता तुम्हारे, देनी है विकट परीक्षा|
प्रसन्नवदन राम-लक्ष्मण चले, छोड़ पिता का घर
पीताम्बर में सजे थे, तरकश था पीठ पर|
एक श्याम एक गौरवर्ण, सुन्दर थी जोड़ी
लोभ निहारने का, मुनि की आँखों ने नहीं छोड़ी|
मार्ग में मिली राक्षसी ताड़का, राम ने कर दिया उसका वध
तर गई वह इस संसार से, मिल गया राम का पद|
अस्त्र-शस्त्र राम को सौंप मुनि बोले, बढ़े आपका बल
भूख-प्यास पर विजय पाएँ, समझें असुरों का छल|
क्रोधी असुर मारीच सुबाहु, आए पैदा करने विघ्न
आश्वासन दिया राम ने, पूरा होगा यज्ञ निर्विघ्न|
फरहीन बाण चलाया, मारीच गिरा समुद्र के पार
श्रीराम के अग्नितीर से, सुबाहु गया प्राण को हार|
अनुज लक्ष्मण ने किया, असुर कटक का संहार
देव मुनीश्वर प्रसन्नमन से, करने लगे स्तुति बारम्बार||
ऋता शेखर ‘मधु’
बहुत ही सुन्दर भावमय और भक्तिमय प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.
कभी मौका मिले तो मेरी पोस्ट 'रामजन्म-आध्यात्मिक चिंतन-२'भी पढियेगा.ताड़का आदि को आध्यात्मिक रूप से समझने की कोशिश की है मैंने.यह पोस्ट मेरी लोकप्रिय पोस्टों में से एक है.
एक श्याम एक गौरवर्ण, सुन्दर थी जोड़ी
जवाब देंहटाएंलोभ निहारने का, मुनि की आँखों ने नहीं छोड़ी|... bahut priy varnan hai yah
। आनन्दमयी भावमयी प्रस्तुति………… आनन्द विभोर कर गयी………आभार
जवाब देंहटाएंsaral shabdon men bhaktimay prastuti.i like it
जवाब देंहटाएंkhubsurat prastuti:)
जवाब देंहटाएंआप प्रशंसनीय कार्य कर रही हैं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं।
अतिसुन्दर बधाई की परिधि से बाहर
जवाब देंहटाएंश्वास और स्वभाव में जिनके, बसते चारो वेद
जवाब देंहटाएंवही गए विद्याध्ययन को, अद्भुत है ये भेद|
यही तो विशेषता होती है कालजयी चरित्रों की, बहुत खूब। राम भगवान के चरित्र को प्रस्तुत करने के लिए आभार।
…आनन्दित करती भावमयी प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत और भक्ति से परिपूर्ण बेहतरीन प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंbahut kamaal ki lekhni hai aapki. sampurn ramcharitmanas ko aap dohe ka roop de rahi hain. bahut badhaai.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आयीं,बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट 'हनुमान लीला भाग-२'पर
आपका स्वागत है.