!! क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
हार की जीत
दिसम्बर महीने की ठंढ थी| रजनी अपने घर के बाहर लान में बैठी धूप का आनन्द ले रही थी| तभी एक महिला अपनी दस वर्षीया पुत्री के साथ गेट पर खड़ी दिखी| महिला देखने में भले घर की लग रही थी| रजनी उठकर उसके पास गई और प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा|
‘मैं बहुत मुसीबत में हूँ|’महिला ने कहा|
‘क्या बात है’,रजनी ने पूछा|
‘मैं पास के छोटे शहर से अपना इलाज करवाने यहाँ आई हूँ| मुझे माइग्रेन है| कभी-कभी मुझे यहाँ आकर दिखाना पड़ता है| मेरे साथ मेरी बच्ची है| मैं ने डाक्टर से दिखा लिया है| मेरा बटुआ किसी ने पार कर दिया है| मेरे पास घर लौटने के पैसे नहीं हैं| यदि आप घर लौटने के लिए गाड़ी का भाड़ा दे दें तो बहुत मेहरबानी होगी| मैं जब अगले महीने इलाज के लिए आऊँगी तो पैसे लौटा दूँगी|’
‘यहाँ पर इतने सारे मकान हैं फिर आप मदद माँगने यहाँ ही क्यों आई हैं|’रजनी ने जिज्ञासा प्रकट की|
‘क्योंकि मुझे आपके चेहरे पर धार्मिकता और दयालुता नज़र आई|’
महिला का उत्तर सुन रजनी उसकी चापलूसी पर मन ही मन मुस्कुरा उठी|
वह घर के अन्दर गई और उसने अलमारी से तीन सौ रुपए निकाले| रजनी ने उस महिला को इस विश्वास पर पैसे दे दिए कि वह अगले महीने लौटा देगी|
इस घटना को बीते दो साल हो चुके हैं| पैसे वापस नहीं आए| रजनी ने उस महिला की बातों और आँखों की सच्चाई पर विश्वास किया था , इसलिए आज भी उसे पैसे देने का पछतावा नहीं है|
आज जब भी वह इस घटना के बारे में सोचती है तो बचपन में पढ़ी बाबा भारती और डाकू खड्गसिंह की कहानी को याद करती है| इस कहानी में डाकू खड्गसिंह ने दीन-हीन याचक बनकर बाबा भारती का घोड़ा उड़ा लिया था| बाबा ने खड्गसिंह से विनती की थी कि वह इस बात को किसी से न बताए वरना लोग दीनों पर विश्वास करना छोड़ देंगे|
ऋता शेखर ‘मधु’
are aise tathakathit masumon ne sach ko bezaar ker diya...
जवाब देंहटाएंआज के युग में सच की पहचान करना तो बहुत ही मुश्किल काम है|
जवाब देंहटाएंकिन्तु सच्चा इन्सान ठगाकर भी मदद करता ही रहेगा|
आज कल बहुत मुश्किल है यह निश्चय करना कि कौन सच बोल रहा है कौन झूठ. इस वजह से चाहते हुए भी हम ज़रूरतमंद की सहायता नहीं कर पाते...बहुत सुंदर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआज का युग ऐसा ही तो नही रहा।
जवाब देंहटाएंहम भला सोच कर लोगों की मदद करते हैं और वो ही लोग हमें उल्लू बना जाते हैं...खडग सिंह वाली कहानी तो बेजोड़ थी...
जवाब देंहटाएंनीरज
मदद करने से पहले कुछ अलग तरह के सवाल -जबाब कर
जवाब देंहटाएंअगले की मनोदशा से आप पकड़ सकते है ! वैसे ये थोडा मुस्किल तो है पर आजमायें जरूर !
मैं तो ट्रेन में अपाहिजों को भी बादाम या गुटखा बेचकर
अपने स्वाभिमान को कायम करते देखा हूँ और साथ ही
कुछ स्वस्थ लोंगों को भी ढोंग करके भीख माँगते देखता हूँ !
लोगों को अपने अन्दर की ताकत और स्वाभिमान को जगाना होगा ! हमें मदद करना चाहिये पर भीख नहीं देना चाहिये ! भारत के कानून में भी भीख देना और लेना दोनों जुर्म है !
बहुत सुन्दर ..!
चलिए बता देता हूँ...2002 में दिल्ली गया था, एक एक्जाम देने..मैं पहली बार किसी दूसरे शहर में अकेला जा रहा था...दिल्ली स्टेशन पर एक आदमी मिला...बड़े प्यार से कहने लगा..'की मैं एक टीचर हूँ,ghaziabad से आया हूँ और मेरा पर्स किसी ने मार लिया...क्या आप मुझे 50रुपया दे सकते हैं ताकि मैं किराया दे सकूँ लोकल ट्रेन का...'
जवाब देंहटाएंमैंने तो उसे 50 रुपये दे दिए लेकिन मेरा दोस्त मुझे डांटने लगा...फिर उसने बताया की ऐसे बहुत लोग मिलते हैं...मैं खुद ही कई बार देख चूका हूँ और एक दो बार तो हम दोस्त ऐसे लोगों की क्लास भी ले चुके हैं ;)
आजके ज़माने में किसीकी मदद करने से पहले सौ बार सोचना पड़ता है क्यूंकि मदद करने के बाद ये सुनने को मिलता है की ज़रूर कोई मतलब है या फिर कोई काम निकलवाना चाहता है!
जवाब देंहटाएंबाबा भारती कम ही मिलेंगे लेकिन खडग सिंह तो हर जगह मिल जाएंगे।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी।
आपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्वाद ।
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंऋता जी कहानी अपने मक़सद में क़ामयाब है
जवाब देंहटाएंकहानी बहुत अच्छी लगी |बधाई |
जवाब देंहटाएंनव वर्ष शुभ और मंगलमय हो |
आशा