आज का दर्द
दो पीढ़ियों के बीच दबा
कराह रहा है आज
पुरानी पीढ़ी है भूत का कल
नई पीढ़ी है भविष्य का कल
दोनों कल मिल
आज पर गिरा रहा है गाज़|
भूत का कल झुके नहीं
भविष्य का कल रुके नहीं
दोनों का निशाना
बन गया है आज|
ना मानो तो बुज़ुर्ग रुठते
लगाम कसो औलाद भड़कते,
क्या करुं कि सब हंसे
हाथ पर हाथ धरे
सोंच रहा है आज|
भावनात्मक अत्याचार करते वृद्ध
घायल हो रहा है आज|
इमोशनल अत्याचार से
स्वयं को बचा रहा भविष्य का कल|
मेरा क्या होगा
भविष्य अपना सोच सोच
घबड़ा रहा है आज|
पुरानी पीढ़ी मानती नही
नई पीढ़ी समझती नहीं
दोनों के बीच समझने का ठेका
उठा रहा है आज|
पुराना कल बोले
मेरी किसी को चिन्ता नहीं
नया कल बोले
मेरी कोई सुनता नहीं
सुन सुन ये शिकवे, कान अपने
सहला रहा है आज|
दोनों पीढ़ी नदी के दो किनारे
बीच की धारा है आज|
कभी इस किनारे
कभी उस किनारे
टकरा टकरा
बह रहा है आज|
भूत और भविष्य का कल
तराजू के पलड़ों पर विराजमान
बीच की सूई बन
संतुलन बना रहा है वर्तमान|
दोनों कल चक्की के दो पाट
उनके बीच पिसते स्वयं को
साबूत बचा रहा है आज|
रुढ़िवादी है पुराना कल
है वह झील का ठहरा जल
आधुनिक है नया कल
है वह नदी का बहता जल
कभी झील में कभी नदी में
मौन रह, पतवार संभाल रहा है आज|
परम्परा मानता जर्जर कल
बदलाव चाहता प्रस्फुटित कल
दोनों के बीच चुपचाप
सामंजस्य बैठा रहा है आज|
कल और कल का
कहर सह सह
टूट न जाना आज|
धैर्य का बाँध टूटा अगर
बह जाएँगे दोनों कल|
कल और कल की रस्साकशी में
मंदराचल पर्वत
बन जाओ तुम आज
कई अच्छी बातें उपर आएँगी
बीते कल का प्यार बनोगे
आगामी कल का सम्मान|
भूत का कल झुके नहीं
जवाब देंहटाएंभविष्य का कल रुके नहीं
दोनों का निशाना
बन गया है आज|
visham paristhiti...
kal aaj aur kal ko paribhashit kartee sargarbhit post.
जवाब देंहटाएंएक और अच्छी प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंआभार ||
बीते कल और आने वाले कल के बीच पिसता आज...
जवाब देंहटाएंये समस्या तो हमेशा ही रही है... पीढ़ियों के सन्दर्भ में भी और समय के सन्दर्भ में भी!
एक बेहद शानदार प्रस्तुति बहुत सुन्दरता से कल आज और कल की विडम्बनाओ को उकेरा है और साथ् मे उसका हल भी दिया है…………काबिल-ए-तारीफ़ प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकल और आज के अंतर्द्वंद्व को सुन्न्दरता से प्रस्तुत किया है.
जवाब देंहटाएंएकदम सच और खरी बात!!
जवाब देंहटाएंvichrniya post ke liye hardik badhai
जवाब देंहटाएंकल और कल की रस्साकशी में
जवाब देंहटाएंमंदराचल पर्वत
बन जाओ तुम आज
कई अच्छी बातें उपर आएँगी
बीते कल का प्यार बनोगे
आगामी कल का सम्मान|
बहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति...बहुत सुंदर
ना मानो तो बुज़ुर्ग रुठते
जवाब देंहटाएंलगाम कसो औलाद भड़कते,
क्या करुं कि सब हंसे
हाथ पर हाथ धरे
सोंच रहा है आज|
आपने मेरे मन की बात को कलमबद्ध कर दिया है|
bahut achchi rachna...kuch naya padhne ko mila
जवाब देंहटाएंwelcome to my blog also :)
कल आज और कल साथ में उसका हल आपके मन की सुंदर प्रस्तुति.........
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट की चंद लाइने पेश है..........
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
अगर आपको पसंद आए तो समर्थक बने....
मुझे अपार खुशी होगी........धन्यबाद....
आपका पोस्ट रोचक लगा । मेरे नए पोस्ट नकेनवाद पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति ..बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... आज तो बेचारा बस संतुलन ही बनाता रह जाता है ...
जवाब देंहटाएंआपने मुझे मेरा एक पुराना शेर याद करा दिया
जवाब देंहटाएं'गुजरे हुये' और 'आने वाले' दो 'कलों' बीच
बेकल सदा होता रहा परिवार की खातिर
सुंदर प्रस्तुति ऋता जी
khubsurat prastuti:)
जवाब देंहटाएंसंतुलन में ही गिर रहें लोग , बहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित अभिव्यक्ति.......
जवाब देंहटाएंआप सबके उत्साहवर्धक टिप्पणियों के लिए हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंनवीन जी,आपके शेर की दो पंक्तियों ने इस पोस्ट का सार
बता दिया,बहुत सुन्दर शेर है,आभार|
शुभकामनाओं के साथ
ऋता शेखर
आपका पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंअंतिम बंद का उपदेश आज को चिढ़ाता है। :)
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